Monday 7 November 2016

जिंदगी

कभी तेजी से चलती है, कभी ठहर सी जाती है,
कमाल है ये जिंदगी,
"जिया"
रोज नए खेल खिलाती है ।

ये रस्म-ओ-रिवाज़

ना किसी से अपना दु:ख रो सकते हैँ, ना पुरानी बातोँ को याद करके खुश हो सकते हैँ.....
कितने अजीब हैँ ये हालात ये रस्म-ओ-रिवाज़,
"जिया"
जो इक स्री की इच्छाओँ को मार के रख देतेँ हैँ.......

Sunday 6 November 2016

खुश फहमी या गलती फहमी

कभी तो आएगा वो दिन भी
चाहोगे मुझे जब तुम भी
दुँ क्या नाम इस चाहत को
"जिया"
ये खुश-फहमी हैं या गलत-फहमी।

Saturday 5 November 2016

डर

खुद ही डाल ली अपने पैरों में अकेलेपन की जंजीरे 
"जिया"
कुछ पाने से पहले अब खो देने का डर रहता है ।

Tum Sath Ho

Hai haseen yeh zindagi jo tum sath ho mere,
ikk yahi toh zariya hai
"JIYA"
ghamo ko bhool jaane ka.............*